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________________ महावीर का अन्तस्तल [१७३ '. -. -. . wwwnxn ___ यहां मल्लिदेवी की मूर्ति है । मल्लिदेवीं की जो कथा सुनी - उससे बहुत प्रसन्नता हुई । वह एक राजकुमारी थी। पर अपने हंग की अलग । साधारणतः राजकुमारियों की चर्चा का विषय होता है शृंगार और विवाह । कली खिलते न खिलते उनपर भोरे गुनगुनाने लगते हैं और उनका सारा ध्यान सुसी गुनगुना. हट में चला जाता है । पर मल्लिदेवी बिल्कुल अद्भुत थी। उनका सारा समय तत्वचर्चा और ज्ञान से जाता था । संसार की सेवा करना और क्रान्ति मचाना पुरुषों का ही काम नहीं है स्त्रियों का भी काम है. मल्लिदेवी के हृदय में सेवा की यही महत्वाकांक्षा जागती थी । और इसी के अनुसार उनने काम किया। चार राजकुमार उनके साथ शादी करना चाहते थे चारों ही मल्लिदेवी के लिये प्राण देने को तैयार थे किन्तु मल्लिदेवी ने उन्हें अपना शिष्य बनाकर छोड़ा । उनने एक अपनी ही सुन्दर मूर्ति बनवाई जो भीतर से पोली थी। और जिसके सिर पर ढक्कन था । उस मूर्ति के भतिर उनने सुगंधित पुष्प, रस आदि भर दिये जो कि कुछ दिन में भरे भरे वहीं सड़ गये और अनसे दुर्गध आने लगी ! जब तक ढक्कन बंद रहता तब तक दुर्गन्ध दबी रहती और जव ढक्कन खोल दिया जाता तब दुर्गन्ध कमरे में फैल जाती। इतनी तैयारी करने के बाद, उनने चारों राजकुमारों को। विवाह के विषय में चर्चा करने के लिये बुलवाया । आते ही पहिले उनने उसे मूर्ति को देखा। मूर्ति के सौदय से वे बहुत प्रभावित हुए पर ज्यों ही वह मूर्ति के पास आने लगे त्यों ही मल्लिदेवी ने उसका ढक्कन खोल दिया । ढक्कन खुलते ही मूर्ति से ऐसी दुर्गन्ध निकली कि राजकुमारों ने अपनी नाक दवा ली और कुछ हट गये । मल्लिदेवी ने जरा मुस्कराते हुए पूछा 'मूर्ति के इतने अच्छे सौंदर्य से आप लोग पीछे क्यों हट रहे हैं।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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