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________________ १७२] महावीर का अन्तस्तल . कुदेव पूजा के विरोधी हैं इसलिये कुदेवों का जो मैं अपमान्त करता हूँ उससे आप सहमत होंगे। मैं-पर ऐसे बीभत्स तरीके से कुदेव पूजा का विरोध करना विष्ठा से कपड़े का मैल धोना है। तुम्हारी यह बीभत्स असभ्यता तो कुदेव पूजा से भी बुरी है। विरोध में भी संभ्यता की मर्यादा न छोड़ना चाहिये। - गोशाल-तो अब मैं ऐसी असभ्यता का प्रदर्शन न करूंगा। ४४- मल्लि अहंत १२ वुधी ९४३९ इतिहास संवत शालवन में रहनेवाली एक भिल्लनी ने खूब गालिया दी। मालूम नहीं उसे आयर्यों से ही चिढ़ थी, या श्रमणों से चिढ़ थी, या मेरे नग्न वेष से चिढ़ थी, पर बिना किसी स्पष्ट कारण के वह दिनभर गालियाँ देती रही। बीच बीच में दो चार बार तो उसने कंकड़ भी मारे जब वह थक गई तब मैं वहां से चला आया। मार्ग में जितशत्रु राजा की सीमा में प्रवेश करने पर शत्रु का गुप्तचर समझकर जितशत्रु के मनुष्यों ने पकड़ लिया और राजा के सामने उपस्थित किया। वहां किसी ने मुझे पहिचान लिया। जितशत्रु को जब मेरा परिचय मिला तब सुसने क्षमा मांगी। वहां से विहार कर मैं कल ही इस पुरिमताल नगर में आया हूँ। और इस मल्लि देवी के मन्दिर में ठहरा हूँ। यक्षों के मन्दिर बहुत देखे, कामदेव आदि के मन्दिरों में भी ठहरा पर इस मन्दिर सरीखा शान्त वातावरण कहीं नहीं पाया।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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