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________________ . १६६] महावीर का अन्तस्तल वेचारे झाड़ों को व्यर्थ कष्ट क्यों दे रहे हो? . गोशाल बोला-झाड़ तो एकेन्द्रिय है भगधन्, उनके विषय में हिंसा अहिंसा का क्या विचार ? . . मैं- चलते फिरते त्रस जीवों के बराबर विचार भले ही न किया जाय पर विचार तो करना ही चाहिये। ::: गोशाल-तब तो स्वास लेने का भी विचार करना पड़ेगा। मैं-स्वारू लेने का विचार नहीं किया जासकता क्योंकि उसमें वे सूक्ष्म प्राणी मरते हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते हैं। पर झाड़ तो स्थूल प्राणी है सूक्ष्म और स्थूलों की हिंसा में बहुत अंतर है । सूक्ष्म प्राणियों की हिंसा के विषय में संयम पाला नहीं जासकता पर स्थूल प्राणियों की हिंसा के विषय में संयम , पाला जासकता है। - इसके बाद गोशाल चुप होगया और फिर उसने निरर्थक उपद्रव नहीं किया। - इसके बाद जब मैं ध्यान लगाने बैठा तब मैंने तय किया कि जीवलमास छः के स्थान पर सात कर देना चाहिये । सुक्ष्म एकेन्द्रिय. स्थूल एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय, चारइन्द्रिय, असंज्ञपिंचेन्द्रिय, संज्ञीपंचेन्द्रिय । सूक्ष्म एकेन्द्रिय की हिंसा अनिवार्य है, स्थूल एकेन्द्रिय की हिंसा निरर्थक न .. करना चाहिये, वाकी त्रस जीवों की हिंसा उनके निरपराध होने पर जान बूझकर कदापि न करना चाहिये । छः की अपेक्षा सात श्रीवसमास मानने से अहिंसा के सूक्ष्म विचार और उनकी व्यवहार्यता का अच्छा समन्वय होता है । २८-मस्मेशी ९४३८ इ. सं. गत छः वर्षों के भ्रमण और तप का इतना प्रभाव तो
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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