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________________ महावीर का अन्तस्तल [१६५ नहीं बताई जासकती। इससे कीड़ी की हत्या और पशुपक्षी की हत्या एक ही श्रेणी की बनजाती है इससे लोग अहिंसा को अव्यवहार्य मानकर टाल देते हैं। हिंसा अहिंसा का विचार मनुष्य को करना है 1 किस जीव की हिंसा से उसके परिणामों परं न्यूनाधिक प्रभाव पड़ता हैं इसका विचार करते समय मनुष्य की सामाजिकता विचारणीय है । इसलिये संज्ञी असंज्ञी या समनस्क असमनस्क का विचार करते समय मैंने मनुष्य की अपेक्षा से निर्णय किया है । कीड़ी कीड़ी के लिये समनस्क होसकती है पर मनुप्य के लिये वह अमनस्क ही है । इसलिये मनुष्य कीड़ों को बचाने के लिये जितना प्रयत्न करता है उतना ही प्रयत्न पशुपक्षियों को बचाने के लिये करे यह ठीक नहीं, इसलिये समनस्क अमनस्क भेद ठीक ही है। इस प्रकार आज मैंने एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय,संज्ञी पंचेन्द्रिय इसप्रकार छः भागों में जीवों का समास किया, इससे हिंसा आहिंसा की यवहार्यता में बड़ी सुविधा होगी। अब यह स्पष्ट विधान बनाया जासकता है कि एकोन्द्रिय की हिंसा तो अनिवार्य है पर दो इन्द्रिय आदि की हिंसा रोकना चाहिये और संज्ञी पंचेन्द्रिय की हिंसा का बचाव सत्र से अधिक करना चाहिये । गोशाल को भी मने यह बात समझा दी है। १ चिंगा ९४३७ इ. सं. गोशाल में चपलता बहुत है और लड़कपन सरीखा उन्माद भी। आज जब वह मेरे साथ आरहा था तब वन में उसने वहत सी वनस्पति का नाश किया। चलते चलते किसी झाड़ की शाखा तोड़ देना, कोई पौधा उखाई देना, किसी को कुचल देना. इस प्रकार कुछ न कुछ उपद्रव करते चलना उसका स्वभाव सा बन गया था । यह सब देखकर मैंने कहा-गोशाल
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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