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________________ महावीरका अन्तस्तल ३५ शृंगार का प्रवाह [8319 ३७ सत्येशा ६४३६ इ. सं. 1 पिछले दस मास में कोई विशेष घटना नहीं हुई । पृष्ठचम्पा नगरी में चौथा चौमासा अच्छी तरह किया । चिन्तन मनन निरीक्षण का काम चलता रहा पर ऐसा मालूम होता है कि अभी इस दिशा में बहुत काम करना है । अनुभवों का संग्रह तो करना ही है । यह सब कार्य होरहा है । फल इस कृतमंगल नगर में आया । यह नगर उत्तर की और नया वसता जा रहा है। दक्षिण की तरफ पुरानी वस्ती है। यहां कुछ चेपधारी भिखारी रहते हैं। नगर का यह भाग कभी पर्याप्त सुन्दर रहा होगा। क्योंकि बीचमें जो यक्ष मन्दिर है वह पर्याप्त विशाल दृढ़ और सुन्दर हैं । गर्भगृह के आगे की जगह छोड़कर - जिससे दर्शनार्थियों को कोई असुविधा न हो - मैं एक कोने में ठहर गया । शरीर को टिकाने के लिये यह कोना काफी था । पहरभर रात निकलने पर कुछ परिवार वहां आये । प्रोढ़ प्रशढ़ाओं, युवक युवतियों तथा वालक वालेकाओं का वहां अच्छा जमघट लगगया। पहिले तो उनने मद्यमान किया फिर नशा आने पर नृत्यगान शुरु किया । स्त्रियों ने भी असमें भागलिया। गीतों में भी और श्रृंगार का मिश्रण था पर चेष्टाओं में 'गार की प्रधानता थी । धर्म के नामपर रात्रि जागरण करने की जी परम्परा है उसके पालन करने के लिये यह सव आयोजन था । मेरे लिये यह सब चिन्तन की अच्छी सामग्री थी । मैं नाना दृष्टिकोणोंसे इन सव वातों का चिन्तन करने लगा । जो कुछ अप्रिय या अनिष्ट मालूम हुआ असे सहन करने लगा । पर
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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