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________________ १३६7 . महावीर का अन्तस्तल : मेरे राजकुमारपन के कारण और यक्ष-विजय के कारण आरक्षक बहुत डरे और पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगे। फिर भी मैं शांत मौनी बना रहा । परिवाजिकाओं ने लोगों की अस्थिक गांव की कहानी सुनाई और मैंने वहां चातुर्मास किया था असकी बात भी कही। उनकी बातों से मालूम हुआ कि उनका नाम सोमा और जयन्तिका है, उनका भाई उत्पल ज्योतिष का धन्धा करता है । इसी उत्पल ने शूलपाणि यक्ष के मन्दिर में मेरे स्वप्नों का फल बताया था जिससे लोगों की अनु. रक्ति आर बढ़गई थी। आज दिनभर में इस घटना पर कई दृष्टियों से विचार करता रहा। एक बात जो वार वार विचार में आई, वह थी एक राज्य की आवश्यकता । आज कल राज्य इतने छोटे छोटे हैं कि दो चार गांव जाते ही दूसरे राज्य की सीमा आजाती है। राज्य की रक्षा के लिये राज्य की सीमा की रखवाली के लिये प्रत्येक राज्य को इतनी शक्ति लगाना पड़ती है कि प्रजा की सेवा के लिये राजा के पास शक्ति सम्पत्ति कुछ नहीं बचती। लोगों को भी यातायात में बड़ी कठिनाई होती है । एक ही दिन की यात्रा में कई बार नये नये राज्यों की सीमाएँ आजाती हैं, प्रत्येक स्थान पर यात्रियों की जांच परख होती हैं, आरक्षकों के द्वारा यात्री तंग किये जाते हैं। इसकी अपेक्षा सारे भरत क्षेत्र में एक चक्रवर्ती का राज्य हो तो लोगों को भी यातायात में सुविधा हो, गांव गांव में परचक्र का भय भी न रहे, सेना और परराज्य से रक्षा आदि का व्यय भी घट जाय और बचीहुई शक्ति सम्पत्ति जनता के हितमें लगाई जा सके। यद्यपि मेरा कार्य महाराज्यं या साम्राज्य स्थापन करना .. नहीं है फिर भी मैं अपने तीर्थ में इस तरह के विशाल साम्राज्यों का समर्थन अवश्य करूंगा, इसप्रकार की कथाएँ भी वनाऊंगा जिस से सारे भरतक्षेत्र के एक राज्य की व्यावहारिकता पर प्रकाश पड़े।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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