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________________ १२८] . महावीर का अन्तस्तल . . .. ." एक ही दिन में आपने कायापलट करली थी । सिर ___ का पूरी तरह मुंडन करालिया था और सब वस्त्रों का त्याग कर मेरे ही तरह दिगम्बर वेय ले लिया था । आते ही कहा - भगवन, आप मुझे अपात्र समझ कर छोड़कर चले आये । पर अब देखिये में पात्र होगया हूं। जब मैं आप ही की तरह दिगम्बर हूं, आप ही की तरह मुंडी हूं। आगे भी ने आप की ही तरह रहने का संकल्प कर लिया है। मैने कहा-केवल दिगम्बर ओर मुंडा होने से ही तो मेरा अनुकरण नहीं होसकता । आगे तुम कैसे निकलोगे इसका क्या ठिकाना? __गोशाल-ठिकाना क्यों नहीं है भगवन, जो जैसा होने वाला होता है वैसा ही होता है उसमें न गई घट सकती है न तिल बढ़सकता है। सब भविष्य नियत है । इसलिये आप कोई चिन्ता न कीजिये ! ___ मैं-तुम तो पक्के नियतिवादी वनगये गोशाल ! गोशाल-आपने ही तो मुझे नियतिवाद का पाठ पढ़ाया है। मैं-पर तुम सरीखा घोर नियतिवादी तो मैं भी नहीं हूं। मैं तो नियतिवाद को सचाई का एक अंश ही मानता हूं वह भी मुख्यांश नहीं । मैं तो यत्नवादी हूं। तब तुम्हें नियतिवाद का पाट कैसे पढ़ाऊंगा? गोशाल-परसों आपने कहदिया था कि मुझे भिक्षा में खट्टा छाछ, कोद्रव का भात और खोटा निष्क मिलेगा । मैंने दिनभर यत्न किया, और हर एक से कहा कि मुझे खट्टा छाछ न देना, कोद्रव का भात न देना, खोटा निष्क न देना, पर किसी के यहां दूसरी चीज न मिली | तव भूख से पीड़ित होकर शाम
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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