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________________ ( ७० ) नहीं हुई है। उसे लगा, शायद गुरुजी को पता नहीं चला है। उसने विनय पूर्वक कहा"गुरुदेव ! आपश्री के पैर से एक मेंढ़की की हिंसा हुई लगती है. कृपया प्रायश्चित ले लें।" प्र. १२४ शिष्य की बात सुनकर गुरुजी ने क्या किया था ? हित बुद्धि के साथ सरलता से कही गई बात सुनकर गुरुजी क्रोध में लाल-पीले हो गये । लाल-लाल आँखों से शिष्य की ओर देखते हुए कहा--"क्या मार्ग में मरी पड़ी सभी मेंढ़कियां मैंने ही मारी हैं ? मूर्ख; गुरु की आशातना करता है। प्र. १२५ गुरु के कठोर वचन सुनकर शिष्य ने क्या किया था ? उ. "आग के सामने पानी की ही जीत होती है। यही सोचकर शिष्य चुप रहा । 'सायंकालीन प्रतिक्रमण के समय उसने पुनः गुरुजी को उसी बात की आलोचना करने की याद दिलाई। प्र. १२६ शिष्य को पुनः उस वात कहने पर गुरु ने क्या किया था ? ., .
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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