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________________ प्र. ११८ म. स्वामी के अँगूठे से श्वेत रुधिर निकलता देखकर चंडकौशिक ने क्या किया था । उ. उ. ( ६८ ) ठिकाना न रहा, जब देखा, अँगूठे पर जहाँ डंक मारा है, वहाँ से तो दूध सी- श्वेत रक्त की धारा बह रही है । प्र. ११६ म स्वामी ने उपसर्ग के बदले में चंडकौशिक 4 को क्या दिया था । क्षमा का दान और अहिंसा का सन्देश | प्र. १२० म. स्वामी ने चंडकौशिक को प्रतिबोध देते हुए क्या किया था ? 4 उ. तीव्र विष के बदले मधुर दुग्ध धारा को देखकर नागराज चकित भ्रमित-सा होकर वारबार उस दिव्य पुरुष की मुख मुद्रा की ओर देखने लगा। बार-बार देखने पर नागराज के संतप्त मन को अपूर्व शांति, प्रभूत शीतलता का अनुभव हो रहा था । " हे चंडकौशिक ! समझो ! समभो ! अब शांत हो जाओ ! कुछ बोध लो ! अपना कोध शांत करो । 1
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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