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________________ उ. ( २६५ ) सर्वानुभूति अगरणार के हित वचनों ने गौशा-लक की क्रोधाग्नि में घी का काम किया । " उसने उसी समय तेजोलेश्या का प्रयोग कर सर्वानुभूति अरणगार के शरीर को भस्म कर : दिया, फिर उन्मत्त की भांति प्रलाप करने लगा । यह देखकर सुनक्षत्र अणगार की: सहिष्णुता का बांध भी टूट गया । वे भी सर्वा -- नुभूति अणगार की भांति गोशालक को समझाने लगे । गौशालक ने उन पर भी तेजोलेश्याका प्रयोग कर उन्हें ग्राहत कर डाला । वे भी अंतिम आलोचना कर समाधि-मरण को प्राप्त हुए प्र. ५०४ म. स्वामी के दो शिष्यों को भस्म कर गौशालक ने तेजोलेश्या का क्या उपयोग किया था ? हिंसा के अवतार भगवान महावीर के सामने ही दो निरपराध मुनियों को भस्म कर देने के वाद भी गौशालक की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई । उसके दुराचरण पर प्रभु ने एक बार : फिर उसे समझाया । पर परिणाम विपरीत ही रहा। उसने रोष में आकर भगवान' उ.
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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