SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २८३ ) साध्वी चन्दवाला की प्रताड़ना को समता भाव से सहकर वह ग्रात्म-स्वरूप में रमण करने लगी । परिणामतः केवलज्ञान प्राप्त हो गया । प. ४५६ साध्वी चन्दनवाला को केवलज्ञान कब प्राप्त उ. उ. हुआ था ? रात्रि के समय साध्वी चन्दनवाला विश्राम कर रही थी । उनके हाथ के पास सर्प को देखकर साध्वी मृगावती ने चन्दनबाला को सर्प की जानकारी दी । तव चन्दनवाला ने पूछा- आपको सर्प को जानकारी कैसे हुई ? इसपर मृगावतीजी ने कहा - यापकी कृपा से उस समय साध्वा चन्दनवाला को ज्ञात हुआ कि केवलज्ञान प्राप्त साध्वी मृगावतो जी का अपमान किया था । अतः वे पश्चात्ताप करती हुई ग्रात्म-स्वरूप में रमण करने लगो । भावों की निर्मलता से उन्हें उसी समय केवलज्ञान प्राप्त हो गया । प्र. ४५७ म. स्वामा कौशंबी से विहार कर कहाँ पधारे थे ? काशी होते हुए मगध देश की ओर । उ.
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy