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________________ उ. 4 ( २३७ ) चंडप्रद्योत के इस तीखे व्यंग्य ने विजेता उदायन के धर्मपरायण सरल हृदय को झकभोर डाला, उसे लगा - सचमुच वह विजेता होकर भी अपराधी बन गया है, जो किसी 1 को बन्दी बनाकर उसके साथ क्षमापना का नाटक कर रहा है । उदायन ने चन्डप्रद्योत 4 के बंधन खोल दिये, प्रचंड शत्रु को मुक्त कर दिया। चंडप्रद्योत उदायनं को इस सरलता, विशालता और क्षमाशीलता से गदगद हो गया और उसका सदैव के लिए मित्र : वन गया । M. उ. - प. २६६ म. महावीर सिंधु सौवीर के किस नगर में पधारे थे ? उ. सिधु - सौवीर की राजधानी वीतभयनगर में । प. २६७ म. स्वामी के चरणों में कौन वंदन करने आया और क्या प्रार्थना की थी ? महाराजा उदायन ने प्रभु के चरणों में वंदना करके प्रार्थना की- ' भते ! आपके दर्शन करके मैं कृतार्थ हुआ हूँ, अब संसार त्याग कर दीक्षा लेना चाहता हूँ ।' P
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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