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________________ ( २१८ ) प्र. २०५ नंदीषेण मुनिने गरिका के उपहास को सुनकर क्या किया था ? उ. गरिका के उपहास ने मुनि के सुप्त अहं को जगा दिया । यह तुच्छ गरिणका मुझे दीन-हीन भिखमंगा समझ रही है, इसे पता नहीं, मैं महाराज श्रोणिक का पुत्र हैं । महान ऋद्धि सम्पन्न तपस्वी हूँ ! मुनि ग्रावेश में आ गये । उन्होंने अपने तपोबल का चमत्कार दिखाने हेतु एक हाथ आकाश की ओर उठाया । बस देखते ही देखते प्रांगन में रत्नों का ढेर लग गया । "वस मिल गया अर्थलाभ ?" मुनि ने कहा । प्र. २०६ नंदीषेण मुनि के चमत्कार को देखकर गरिएका ने क्या किया था ? 3. नंदीषेण मुनि बिना भिक्षा लिये लौटने लगे, गरिएका हाव-भाव करती हुई रास्ता रोककर खड़ी हो गई - "महाराज ! यह रत्नोंका ढेर लगाकर व आप कहाँ जा रहे हैं ? धर्मलाभ से ग्रर्थलाभ किया तो अव अर्थलाभ से प्राप्त भोगलाभ को भी प्राप्त कीजिये। मैं आपकी
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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