SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -उ. ( २१६ ) अ. १६६ नंदीषेण कुमार को त्याग मार्ग पर जाने से किसने रोका? महाराजा श्रेणिक और नंदीषेण के ईष्ट मित्रों ने। 'प्र. २०० नंदीषेण कुमार को उनके मित्रों ने कैसे समझाया था ? "नंदीषेण ! तुम अभी रुको, मनको साधो । मेघ' का अनुसरण तुम कैसे करोगे ? उसकी वृत्तियाँ प्रशांत थीं और तुम्हारी वृत्तियों में अभी भोग-विलास का ज्वार है, कुछ दिन और रुको।" 'प्र. २०१ नंदीषेण ने उसके मित्रों से क्या कहा था? . "मैं तप और ध्यान के द्वारा स्वभाव और संस्कार को बदल डालूगा। "इसी विश्वास पर उसने सबकी सुनी-अनसुनी कर दी और भगवान महावीर के पास जाकर दीक्षित हो गया। 'प्र. २०२ नंदीषेण मुनि ने दीक्षा लेकर क्या किया था ? नंदीषेण ने रागानुबंधित वृत्तियों को क्षीण करने के लिये कठोर तपश्चरण प्रारम्भ कर
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy