SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उ. ( १६६ ) मेघकुमार को सबसे अधिक आश्चर्य की बात: लगी कि भगवान् के इस दरबार ( समव-सरण ) में सब समान आसन पर बैठे थे ।. चाहे देव या देवेन्द्र हों, सम्राट या, महारानी हों या प्रति साधारण प्रजाजन । सर्वत्र समता → का साम्राज्य था, समानता का वातारण था समानता की इस नई दृष्टि ने मेघकुमार के मन को प्रभावित कर दिया, महावीर की दिव्य चेतना के प्रति आकृष्ट कर दिया । उसे एक अनुभूति हुई; यहां कुछ नवीन है, अब तक जो नहीं सुना, नहीं देखा वह यहाँ उपलब्ध है | मेघकुमार विनय पूर्वक अभिनंदन करके प्रभु के समक्ष बैठ गया और ध्यानपूर्वक तन्मयता के साथ उनकी अनुपम वारणी का रसपान करने लगा । प्र १७२ म स्वामी की वाणी को श्रवण कर मेघ कुमार को क्या हुआ था ? उ, प्रभु की अनुपम वाणी में मानव जीवन की महत्ता, उपयोगिता और उसे सफल बनाने की कला का सरल हृदयग्राही विश्लेषण
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy