SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८० ) लिए भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिकादि देव देवियाँ अपने सुसज्जित विमानों में बैठकर आ रहे थे । इन विमानों को दूर से आते देखकर ग्रामवासी देखने के लिए उमड़े । यज्ञशाला में यज्ञ करते ब्राह्मणों को भी जानकारी हुई। हुई । सब ब्राह्मणों में सर्वश्र ेष्ठ इन्द्रभूति ब्राह्मण को गर्व हुआ। वे कहने लगे अपना कैसा यज्ञ ; जिसको देखने के लिए स्वर्ग से देव-देवेन्द्र भी ना रहे हैं। पर एक के बाद एक विमान यज्ञशाला को पार कर आगे बढने लगे । इन्द्रभूति को सन्देह हुआ । हमारे से भो श्र ेष्ठ श्रौर महान व्यक्ति इस नगर में कौन आया; जिसके वहाँ स्वर्ग के देवेन्द्र भी जा रहे हैं । इस प्रकार अपने ही मन में शंका करते वे भी प्रभु के समीप पहुँचे । वहाँ प्रभु द्वारा उनकी . शंका का निवारण होने पर अपने शिष्यसमुदाय के साथ उन्होंने दीक्षा ले ली। इस प्रकार क्रमश : अन्य मुख्य ब्राह्मण भी अपनी-अपनी शंकाओं के समाधान होने पर अपने २ शिष्य परिवार के साथ प्रभु के चरणों में दीक्षित हो गये ।
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy