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________________ ( १७६ ) ज्ञ-कर्म के अंगोपांग एवं रहस्य के साथ, ऋग्वेद-यजुर्वेद सामवेद- श्रथर्ववेद - चारों वेदों में, पांचवे इतिहास और छट्ट े निघंटुमें निश्रणात थे। स्मारक (दूसरे को याद करानेवाले) वारक (अशुद्ध पाठको रोकनेवाले) और धारक (अर्थको जाननेवाले थे । वे छ: अंगो के जानकार, खष्टि 1 तंत्र ( सांख्य शास्त्र ) में विशारद, गणित में, शिक्षण में, शिक्षा में, कल्प में, व्याकरण में, छंद में, निरुक्तमें, ज्योतिष में, ब्राह्मणों के अन्य शास्त्रों में एवं परिव्राजकों के आचार- शास्त्र में निपुण, सर्व प्रकार की बुद्धियों से संपन्न, यज्ञ कर्म में निपुण इन्द्रभूति ब्राह्मण थे । प्र. ३५ म. स्वामी प्रपापा नगरी पधारे तथा किसकी रचना हुई थी ? समवसरण की । 3. प्र. ३६ समवसरण की रचना किसने की थी ? देवोंने । उ. प्र. ३७ समवसरण की रचना क्यों की थी ? उ. मिथ्यात्वको दूर करने और शासन प्रभावना के लिए ।
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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