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________________ में पधारे। लोगों ने सत्संग का सुयोग पाकर अपने को धन्य अनुभव किया। . उत्तर भारत की विहार-यात्रा के पूर्व दि. २४-११-८४ शनिवार को २७ नं० पोलोक स्ट्रीट, जैन स्थानक में एक भव्य विदाई समारोह का आयोजन हुआ। जिसमें साध्वीरत्न विदुषी पूज्या श्री प्रारणकुवरजी महासतीजी ठाणा-५ और जैन समाज के अग्रगण्य बंधुओं के हृदयस्पर्शी भाषण हुए। कृतज्ञता से प्रागत जन-समुदाय भावविह्वल था। मुनिवरों का बिहार, बंगाल और उड़ीसा-पूर्व भारत के प्रमुख प्रान्तों का पंचवर्षीय धर्म-जागतिअभियान बहुत हो सफल और उपकारक रहा । अपनी दीक्षाभूमि कलकत्ता से विदाई लेते हुए पूज्य श्री गिरीशचंद्रजो महाराज ने विशाल जन समुदाय को शासन-भक्ति, धर्म के प्रति आस्था, संगठन के प्रति समर्पण के साथ सदा जागृत रहने का संदेश दिया। उन्होंने पूर्व भारत के जैन भाई-बहिनों के धर्म-प्रेम संत-भक्ति व सद्भाव की प्रशंसा की। मंगल-विहार की बिदाई यात्रा दि० २५-११-८४ रविवार को प्रातः ७-३० बजे सैंकड़ों नर-नारी-युवकों और बच्चों के साथ मंगल ध्वनियों से गुजायमान वातावरण में विहार करते हुए
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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