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________________ ( १३२ ) अपने भाग्य को कोसने लगा.. जीरण शेठ को भावना इतनी उच्च श्रेणी पर पहुँच गई थी यदि मुहूर्त भर वह उसी भाव श्रेणो पर चढ़ता रहता तो चार घनघाती कर्मों का क्षय कर 'केवलज्ञानी' बन जाता। किन्तु भगवान के पारणे का सम्वाद सुनकर ही उसको उच्च धारा टूट गई। अन्त में आयु पूर्ण होने पर जीरण शेठ बारहवें स्वर्ग में उत्पन्न हुए। प्र. ३०६ म. स्वामी ने एकादश चातुर्मास के वाद किस ओर विहार किया था ? सुसुमारपुर नगर की ओर। . प्र. ३१. म. स्वामो सुसुमारपुर में कहां विराजमान थे? उ.. सुसुमारपुर के निकट अशोक वनमें ध्यानस्थ थे। प्र. ३११ म. स्वामी के चरणों में अशोक वन में किसने शरण ग्रहण की थी? . असुरराज चमरेन्द्र ने। प्र. ३१२ म. स्वामी के चरणों में चमरेन्द्र ने शरण । क्यों ग्रहण की थी ? . .उ. . सुरों के इन्द्र सौधर्मेन्द्र के वज्रप्रहार से । म
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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