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________________ ( ८५ ) प्र. १८० म. स्वामी ने कोल्लाक से किस ओर प्रस्थान किया था ? सुवर्ण खल की ओर । उ. प्र. १८१ म. स्वामी ने सुवर्णखल के मार्ग में क्या भविष्यवाणी की थी ? उ. 1 पूछा - 'भाई ! प्रभु के पीछे गौशालक चल रहा था । रास्ते में एक स्थान पर ग्वालों की टोली जमी हुई थी । ग्वालों को इंडिया में कुछ पकाते देखकर गौशालक से न रहा गया। हंडिया में क्या पका रहे हो ?" ग्वालों ने गौशालक की ओर देखा और बोले - "खीर ।" नाम सुनते ही गौशलक के मुँह में पानी ग्रा गया, उसने प्रभु से कह - "देवार्य ! ग्वाले खीर पका रहें हैं, जरा ठहर जाइये, हम खीर खाकर चलेंगे ।" -- • भगवान ने कहा- यह खीर पकेगी ही नहीं । वीच में ही इंडिया फट जायेगी, और खीर मिट्टी में मिल जायेगी ।" प्र. १८२ म. स्वामी से भविष्य कथन सुनकर गौशालक ने वालों से क्या कहा था ?
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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