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________________ ७७ (१६) तन के राजकुमार सलौने, मन के वे सन्यासी थे । जीवन में मानवता बिखरी, घट घट के वे वासी थे । वे भोगी, कैसे बन जाते, योगी बन कर आये थे । तीस वर्ष की आयु मे ही, वीतराग गुण गाये थे ॥ मानवता की रक्षा करने, हाथ उठा वरदान पुण्य - दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का ॥ का । (२०) जिधर बढे थे चरण आपके, शवनम अर्ध्य चढाती थी । साधे अमर सुहागिन बनकर, नई ज्योति दिखलाती थी । रूप रंग की रजनी गधा, जीवन - कला सिखाती थी । मोक्ष ज्ञान की दर्शन लीला, अर्थो मे समझाती थी ॥ मंगल चरण चमकते ऐसे, ज्यो पल्लव विवान का । पुण्य - दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का ॥ (२१) प्रेम सत्य है जग-जीवन का, मुनियो को यह ज्ञान दिया । अमर आत्मा देह वस्त्र है, श्रद्धा का सम्मान किया || जिनकी त्याग तपस्या छूकर, चकित हुआ था ध्रुव तारा । जिनकी पावनता को लेकर शरमाई गंगा धारा ॥ · 1 -
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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