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________________ ५७ और प्रख्यात रहे तथा हमेशा उनकी पूजा-अर्चा-उपासना होती रहे। __ आज २५०० सौ वर्पोपरान्त भी मगवान महावीर स्वामी के वतलाये हुए सन्मार्ग पर चल कर उनके अगणित असख्य अनुयायी भक्त जन और श्रद्धालु जन उनका वारम्वार स्मरण करके उनके श्री चरणो मे अपनी विनयाञ्जलियाँ सादर सस्नेह समर्पित करते हुए कभी नही अघाते। जन्म लग्न फलितार्थ महावीर श्री के चरणो मे सादर समर्पित विश्व का प्राधार अणुवत अनुशास्ना आचार्य श्री तुलसी जी एक ही व्यापक अहिंसा विश्व का आधार हो । मित्रता के सूत्र मे आवद्ध सव ससार हो।। शान्ति-सुख की चाह जग मे, कौन कव करता नही । (पर) कल्पना के कौर भरने से उदर भरता नही ।। साध्य मिलता है तभी जव साधना साकार हो॥ एक० ॥ वैर वढता वैर से प्रतिशोध फिर होती घृणा । होड जो शस्त्रास्त्र की है युद्ध को आमन्त्रणा ॥ प्रेम का पथ जो निरापद क्यो नही स्वीकार हो । एक० ॥ श्याम शिर से शेर डरता श्याम शिर फिर शेर से । भय से भय शका से शका, बैर वढता बैर से। नर मिले सव को अमय का एक आविष्कार हो॥ एक०॥ हो विचारो का अनाग्रह स्वाद यह 'स्याद्वाद' का। और आचरणो मे 'तुलसी' अन्त हो उन्माद का ॥ भगवती देवी अहिंसा का अमर आभार हो॥ एक० ॥
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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