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________________ : ५६ : और उसमे भी दो उच्च ग्रहों की भावनाये मुख्य हैं । इसलिये मैं इस जातक को उच्च कर्म कराता हुआ आखिरी मंजिल की अन्तिम सीढी पर ले जाऊँगा । मुझमे मगल और केतु के गुण होने से परम सुख और मोक्ष मे ले जाने योग्य पुरुषार्थ कराने का अधिकार प्राप्त है । सूर्य आत्मा है । मैं शरीर का स्वामी हैं और दूसरे स्थान (धन) का लक्ष्मीपति हूँ । सूर्य आत्मेश है इस कारण से कायक्लेश पूर्वक भी आत्मा को परमात्मा वनाने कानिर्वाण पद पर पहुँचाने का तथा अपने (जातक के ) कुटुम्ब को त्याग कराने का सम्पूर्ण अधिकार मुझे प्राप्त हैं । मैं दुख का कारण हूँ | मेरा नाम सुनकर बड़े-बडे योद्धाओ एव शूरमाओं के पराक्रम नष्ट हो जाते हैं । परन्तु जिस जातक पर मेरी कृपा हो जाती है उसकी कीर्ति भी अजर-अमर हो जाती है । शनि कह रहा है कि मुझ पर उच्च के गुरु का और कर्क के राहु का केन्द्र मे शासन है । अत जातक के शरीर को धर्म के पथ पर चलने और वन-खण्ड - दुर्गम वीहड स्थानो— निर्जन वनो मे वास कराने की मेरी प्रतिज्ञा है । साथ ही वीतरागता पूर्वक मुक्ति धाम दिलाने की शक्ति मुझ मे विद्यमान है परन्तु मुझे अपने मित्र शुक्र से परामर्श करना है क्योकि मेरी मकर और कुम्भ लग्नो में शुक्र को कारकता का विशिष्ट अधिकार प्राप्त होता है और शुक्र की तुला और वृष लग्नो मे मुझे कारकता का अधिकार है । मैं स्वयं तुला राशि के अन्तर्गत हूँ । उच्च पद प्राप्त हैं अत अपने समस्त गुण और वल शुक्र को दे रहा हूँ क्योकि मैं वृद्ध है—मेरी गति मंद है परन्त अपने मित्र शुक्र को आजा देता है (लग्नेश होने से ) कि तुम मे भोग सम्बन्धी सुख प्राप्त कराने के गुण बहुत होते हैं इसलिये भौतिक गुणो का त्याग कराके तप त्याग पूर्वक ऐसी ऋद्धिसिद्धियाँ प्राप्त करना जिससे तीनो लोको मे भगवान महावीर स्वामी का नाम अजर-अमर
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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