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________________ ३६ वर्द्धमानश्री की सार्थकता २४४ इन पच्चीस शतक वर्षों मे, बदल चुका इतिहास जगत का । भौतिकता की चकाचौध मे, विस्मृत हुआ नाम भगवत का || २४५ अवसर्पिणि कलिकाल पाचवा, इसमे सब कुछ हीयमान है । वीर- पथ पर चलने वाला, चेतन ही बस वर्द्धमान है || युग-युग की मंगल कामनाएँ महा गर्भ कल्याणक जन्म-कल्याणक महा दीक्षा - कल्याणक ज्ञान- भानु केवल २४६ धारी, महावीर धारी, वर्द्धमान कल्याण भव-ताण २४७ धारक, हे वीर नाथ मंगल प्रकटाओ, हे सन्मति केवल २४८ परम मोक्ष कल्याणक पथ पर, हे अतिवीर लगा पच परम गुरू के वचनो से, भव-भव हमे २४६ करो । हरो ॥ कारी | धारी ॥ देना | जगा देना || पच्चीस शतक वौं यह शताब्दी, युग युगांन्त तक रहे अमर । महावीर का जीवन दर्शन, अनुप्राणित होये घर-घर ॥
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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