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________________ ७७ वीस कोटि अवतार गजो के, गर्दभ पशु के साठ करोड़ । स्वाँग श्वान के तीस कोटि थे, साठ लाख क्लीवो के जोड || ७८ पर्यायें, रजक वृत्ति की नव्वे लक्ष के, वीस आठ कोटिक क्रम कक्ष ॥ बीस कोटि नारी मार्जार एव तुरगी १२ साठ लाख पर्यायो में उपजे राजाओ के पद ७६ वारम्वार | तो, गर्भपात कर पर उपर्युक्त गिनती अनुसार ॥ Το फलो मे, भोगमूमि अवतार देवकुमार दानादिक के पुण्य अस्सी लाख बार स्वर्गों में क्रमश 3 हुआ । हुआ ॥ ८ १ ऊपर । ह्रास विकासो के झूलों पर, झूला वह नीचे किन्तु मुक्ति का मार्ग न पाया, रत्नवय पथ पर चल कर ॥ ८२ 1 इस प्रकार मारीचि जीव ने कोई क्षेत्र नही छोड़ा | क्योकि कभी भी उसने निज से, सम्यक् नाता नहि जोड़ा || युवराज विश्वनंदी ८३ भ्रमते-भ्रमते राजगृह राजगृह मे, हुआ विश्वनन्दी युवराज | जयिनी विश्वभूति नृप के घर, वह मारीचि जीव सिरताज ॥
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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