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________________ होता है सम्यक्त्व न जब तक, तब तक सारे जप-तप । भले स्वर्ग का वैभव दे दे, कर्म न सकते पर खप ।। महा मिथ्यात्वी भारद्वाज ब्राह्मण ४६ मात् मन्दिर ब्राह्मणी थी, जनक सांकलायन थे । भारद्वाज नाम के उनके, सुत बहुश्रुत ब्राह्मण थे । जो कि स्वर्ग से चय कर आये, पूर्व ऐकान्तिक मिथ्यात्व प्रचारक, बने सस्कारों - वश । त्रिदंडी तापस ॥ फल स्वरूप देवायु वध कर, स्वर्ग - पाँचवे मंद कषायी बाल-तपस्वी, सुरगति में ही पहँचे । पहुँचे॥ भव भ्रमण के भँवर-जाल में फंसा हुआ मारीचि का जीव अपना मूल स्वभाव भूल, वहिरातम भटक रहा है । वह अनादि से चारों गति, मे औधा लटक रहा है।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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