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________________ आयु पूर्ण कर पुन: क्योकि तपस्या के प्रभाव से मिले ७ एकान्तमत प्रचारक अग्निसह्य ब्राह्मण सनत्कुमार स्वर्ग मे सात सागरो तक सुख ૪૨ हुवे, सौधर्म स्वर्ग अधिकारी | सम्पदा भारी ॥ ४३ ब्राह्मण भरत क्षेत्र श्वेतिक नगरी मे, अग्निभूति थे । प्रिया गौतमी के सग सुख से, करते जो कि रमण थे ॥ ४४ वह मारीचि इन्ही के घर मे, अग्निसह्य जिसके द्वारा परिव्राजक का, मिथ्या मत ४५ तापस । पहुँचा, आयु पूर्ण कर भोगा, चख पुण्यों का मधु-रस ॥ मिथ्या शास्त्रों का आयु पूर्ण कर त्रिदंडी साधु अग्निभूति पंचम अवतरित हुआ । स्फुरित हुआ || ४६ सनत्कुमार स्वर्ग से चय कर, मन्दिर नाम अग्निभूति यति हुआ त्रिदडी, गौतम द्विज के ४७ अध्ययन, कर स्वर्गे, पाई नगर मे । घर मे ॥ ऐकान्तिक फैलाया । देव की काया ||
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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