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________________ कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है। इसलिए गुणो की पूजा करो, शरीर की नहीं । किसी को दलित और नीच कह कर मत दुत्कारो, मत घृणा करो , न किसी को उच्च कुल मे उत्पन्न होने से ही उसे ऊँचा मानो | सव मनुष्यो को अपना भाई समझो और अनुचित भेद भावो को भूल जाओ। यह विश्वास और धारणा कि मैं पवित्र हूँ और वह अपवित्र है, मैं ऊँच हूँ और वह नीच है, जघन्य और घृणित पाप है जो विश्व को रसातल मे पहुँचाये बिना कदापि नही रह सकता। विश्व का कोई भी अग अपवित्र अथवा नीच नही है। इसके विपरीत यह मानना कि अमुक अग अपवित्र और नीच हैराष्ट्र, धर्म और समाज के प्रति महान कलक है-भयकर पाप है। किसी को नीच कह कर उसके स्वाभाविक धर्माधिकारी को हडपना नि सन्देह महा नीचता है-घोर पाप है। महावीरश्री का पाँचवाँ कदम (कर्मवाद) भ० महावीर स्वामी ने कर्मवाद के सम्वन्ध मे कहा"जो जैसा करता है वही उसे भोगता है इसलिए 'जैसी करनी वैसी भरनी" के व्यक्ति सम्मत सिद्धान्त को किसी कल्पित और अज्ञात शक्ति को सौप देना कहाँ की बुद्धिमानी है। जिस वस्तु को व्यक्ति ने पैदा किया है उसका उपयोग करने या न करने का उसे पूरा अधिकार है। परम पिता परमात्मा कोई किसी को सुख-दुख नही देता किन्तु पूर्ववद्ध कर्मों का प्रतिफल समय आने पर व्यक्ति को अपने आप मिलता है। जब कोई व्यक्ति अच्छे या बुरे विचार या आचरण करता है-उसी वक्त उसके आस-पास (इर्द-गिर्द) में फैले हुए अनन्त पुद्गल परमाणु खिंच कर आते है और उसकी आत्मा से चिपट कर आत्मस्वरूप
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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