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________________ १२४ नही लेनी पड़ी-वे तो स्वय बुद्ध थे। राजकुमार वर्द्धमान को सन्मति की उपाधि । एक दिन राजकमार वर्द्धमान अपने साथियों समेत प्रकृति की शोभा निरखने के लिए वन-विहार को गए और एक शिला खड पर बैठकर किसी तात्विक विषय पर चर्चा करने लगे। उसी समय दो ऋद्धिधारी मुनि वहाँ आये और वर्द्धमान को देखते ही उनकी बहुत दिनों की कई शंकाओ का समाधान हो गया उसी समय मुनिद्वय ने उन्हे सन्मति के नाम से सवोधन कर नमस्कार किया था। वर्द्धमान को युवराज पद की प्राप्ति ___ संसार के परदे पर कोई विद्या-विज्ञान और भाषाएँ ऐसी न वची थी जिनके कि राजकुमार पूर्ण जानकार न थे। तत्त्वज्ञान का जितना अधिक मंथन उन्होने किया था उतनी ही राजनीति और समाजनीति के समझने की भी कोशिश की थी। उनका विश्वास था कि जिस देश मे धर्म समाज और राजनीति की मधुर धाराएँ सम-समान रूप से प्रवाहित नहीं होती। वहाँ का शासन अधिक उन्नत, समृद्ध एव सुख शान्ति से सुसज्जित नही रह सकता । राजकीय सुख शान्ति का श्रेय राजनीति को है। जातीय धन-वैभव का श्रेय समाजनीति को है और आत्मा के विकास का सारा श्रेय धर्म-नीति को है। राजा सिद्धार्थ ने अपने पुत्र को राजनीति मे अधिक कुशल जानकर उन्हे युवराज वना दिया। राज्य-शासन की बागडोर सभालते ही महावीरश्री ने अपनी कार्य कुशलता का परिचय इतने अच्छे रूप मे दिया कि उनकी सानी का राजनीतिज इतिहास के पृष्ठो मे दूढने पर भी नहीं मिलता।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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