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________________ ११५ कृत सभी धर्मों से प्राचीन है । अनेको प्रमाणो मे से यहाँ पर सुप्रसिद्ध व्यक्तियो के एक दो प्रमाण प्रस्तुत करना श्रेयस्कर होगा । - 'विश्व संस्कृति में जैनधर्म का स्थान' शीर्षक लेख के विद्वान् लेखक श्रीमान् डा० कालीदास नाग एम० ए० डी० लिट लिखते है कि "जैनधर्म और जैन संस्कृति के विकास के पीछे अगणित शताब्दियों का इतिहास छिपा पडा है । श्रीऋषभदेव से लेकर वाईसवे तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ तक महान् तीर्थङ्करों की पौराणिक परम्परा यदि छोड़ भी दी जाय तो भी हमें अनुमानत. ईस्वी सन् ८७२ वर्ष पूर्व का ऐतिहासिक काल बतलाता - है कि उस समय २३ वे तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ स्वामी का जन्म हुआ । जिन्होने ३० वर्ष में घर-गृहस्थी, राजपाट त्याग दिया और जिनको लगभग ईस्वी सन् से ७७२ वर्ष पूर्व बिहार प्रान्तस्थ पार्श्वनाथ पहाड पर मोक्ष प्राप्त हुआ । भ० पार्श्वनाथ निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के महान् प्रचारक थे । उन्होने समूचे ससार को पतित पावन अहिंसामयी जैन धर्म का उपदेश दिया । उस समय यह धर्म प्राणिमात्र का धर्म था ।" · सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् प्रोफेसर श्री रामप्रशाद जी चन्दा के ही शब्दो मे " वास्तव में जैनधर्म अनादि निधन धर्म है, परन्तु इस अवसर्पिणी काल के आदि प्रचारक श्री ऋषभदेव जी हुए हैं। मोहन जोदडो नामक पुरातन स्थान में एक पाच हजार वर्ष प्राचीन ऐसा शहर मिला है, जहाँ के सिक्को पर भ० ऋषभदेव की मूर्तियो की छाप है तथा नीचे “जिनेश्वराय नम:" ये शब्द अङ्कित है ।" ऋषभदेव किसी भी प्रकार ऐतिहासिक व्यक्ति होते हुए भी इतिहास मे उनको स्थान न दिया जाना यह सिद्ध करता है कि वे वैदिक महापुरुषो से भी एक प्राचीनतम महापुरुष हो चुके
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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