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________________ • . चौथा. सर्ग। mmmmmmmmmcinemmmmm कुलमें हुआ था। इसने अपने तेजरूपी दावानलसे शत्रुवंशको जला . डाला था। इसका । विश्वभूति । यह नाम सार्थक था, क्योंकि अर्थी लोग इसकी विश्वभूति-समस्त वैमवको स्वयं-विना याचनाके ग्रहण करते थे ॥११॥ यह राना नयचा था-नीतिशास्त्र में अत्यंत निपुण और उसके अनुसार शासन करनेशला था-महान् पराक्रमका. धारक था । जो इसकी सेवा करते थे उनके मनोरयोंको पूर्ण करनवाला था। खुद अद्वितीय विनय-धनको धारण करता था। अपनी आत्मापर इसने विजय प्राप्त कर लिया था।गुण-संपदाओंका यह उत्कृष्ट स्थान था ॥१२॥ इस राजाकी रानीका नाम जयिनी (नैनी)था। यह ऐसी मालूम होती थी मानो यौवनकी लक्ष्मी हो अथवा तीनलोककी क्रांति एकत्रित हुई हो यद्वा सतीत्रतकी सिद्धिकी राह हो॥१३॥ समस्त भूमंडलपर विजय प्राप्त कर राज्यभारकी त्रिताको अपने हितैषी मंत्रि•योंके सुपुर्दकर रानाने उस मृगनयनीके साथ सम्पूर्ण ऋतुकालके सुखोंमें प्रवेश किया॥१४॥ उक्त देव स्वर्गसे उतरकर इन दोनोंके यहाँ विश्वनन्दी नामका पुत्र हुआ। इसने अपनी स्वर्गीय प्रकृति-स्वभावका परित्याग नहीं किया। विश्वनंदी, विद्वान् उदार. नीतिका वेत्ता तथा समस्त कलाओं में कुशल था ॥१५॥ . एक दिन राजाके पास एक द्वारपाल आया, जिसकी मूर्ति बुढ़ापेसे विकृत हो रही थी । उसको देखकर राजाने शारीरिक परिस्थितिकी निंदा की, और दृष्टिको निश्चलकर इस प्रकार विचार किया कि इसके शरीरको पहले स्त्रियां लौट २ कर देखा करती थीं; और उस विषयमें चर्चा किया करती थीं; परन्तु इस समय उसीका
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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