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________________ arnemannaameer ४४ ] महावीर चरित्र । तथा गाड़ियोंके चीत्कारोंसे कानके पर्दे भी फटे जाते थे, और धान्यके शिखरबंध करोड़ों ढेर लगे हुए थे जिनके निकट उनको वि. दीर्ण करनेवाले बैल भी थे ॥४॥ जहाँक वनाम पविकगण केलाओंको खाकर, अजमें नवीन नारियलका पविन नइ पीकर, और नवीन कोमल पत्तोंकी शय्यापर सोकर विश्राम लेने थे.॥ ५॥ इसी देशमें पृथ्वी तलकी समस्त सारभृत संपत्ति-योंकास्थान, उत्कृष्ट राजगृहसे-रानभवनसे-राजधानीस शोभायमान रानगृह नामको धारण करनेवाला एक रमणीय नगर है।॥ ६ ॥ जहां पर बड़े २ मकानोंमें कालागुरुका घर जलता है और उसके 'धुंआके गुब्बारे उन मकानोंके झरोखोंकी जालीम होकर निकलत हैं, जिससे कि सूर्यका प्रकाश अनेक वर्णका हो जाता है और वह मृगचर्मकी लीलाको धारण करने लगता है ।। ७ ॥ जहाँको खाईका 'जल नगरके परकोटेमें लगी हुई पद्मरागमणिोंके प्रकाशके प्रतिबिम्बके · पड़नेसे गुलाबी रंगका हो जाता है। जिससे वह ऐसे समुद्रकी कांतिको धारण करने लगता है जिसकी लहरें नवीन मूंगाओंके जालसे रंग गई हो ॥ ८॥ बड़े २ मकानोंक ऊपर बैठे हुए स्त्री पुरुषोंकी अतुल रूपलक्ष्मीको देखकर सहसा विस्मयक उत्पन्न होनेसे ही मानों सम्पूर्ण देवताओंके नेत्र निश्चल हो गये ॥९॥ जहां मकानोंके ऊपर लगी हुई नीलमणिोंकी किरणोंसे चंद्रमाकी किरणें रात्रिमें मिल जाती हैं। जिससे ऐसा मालूम होता है मानों चंद्रमा अपने कलंकको 'किरणरूपी हाथोंसे सब जगह छोड़ रहा हो ॥ १० ॥ इस नगरका शासन विश्वभूति नामका राना करता था। उसका जन्म जगत् प्रसिद्ध और विश्वस्त
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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