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________________ २२] महावीर चरित्र । करता। फिर इसके सिवाय और कौनसी ऐसी बात वाकी रही कि निसको मैं तुझे अच्छी तरह समझाऊं ॥२०॥ इस विशाल राज्यका संचालन तुम्हारे सिवाय और कोई नहीं कर सकता । तुमने समस्त शत्रुओंपर विजय प्राप्त कर ली है। अतएव इस राज्यको . तुम्हारे ही सुपुर्द कर मैं पवित्र तपोवनको जाना चाहता हूं। है पुत्र ! इस विषयमें तुम मेरे प्रतिकूल न होना" ॥ २१ ॥ मुमुच महाराजके कहे हुए इन वाक्योंको सुनकर कुमार कुछ क्षणके लिये विचार करने लगा। विचार कर चुकने पर, यद्यपि उसको समस्त शत्रुमंडल नमस्कार करते थे तो भी उसने पहले पिताको नमस्कार किया। और नमस्कार करके बोल्नमें अति चतुर वह कुमार अपने पितासे इस प्रकार बोला- ॥२२॥ "हे नरेन्द्र ! आप हिताहितका . विचार करनेवाले हैं। इसलिये यह राज्यलक्ष्मी आत्माके हितकी साधक नहीं है" ऐसा समझकर ही आप इसका . परित्याग करना चाहते हैं। परन्तु हे तात! जरा यह तो विचार करिये कि अपन कल्याणकी विरोधिनी होनेसे जिसको आप अपना इष्ट नहीं समझते-स्वीकार नहीं करते-छोड़ते हैं उसको अब मैं किस तरह स्वीकार करसकता हूं क्योंकि वह मेरे कल्याणकी भी तो विरोधिनी है ॥२३॥ इसके सिवाय क्या आप यह नहीं . जानते है कि आपके चरणोंकी सेवाके विना मैं एक मुहर्त भी नहीं ठहर सकता हूं। अपने जन्मदाता अर-विंद-वधु (सुर्य) के चले . जानेसे दिवस क्या एक क्षणके लिये भी ठहर सकता है ? ॥२४॥ पिता अपने प्रिय पुत्रको इस प्रकारकी शिक्षा देता है कि जिससे वह कल्याणकारी.मार्गमें प्रवृत्त हो। परन्तु नरकके अंधकृपमें प्रवेश
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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