SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०] महावीर चरित्र । प्राप्ति होना दुर्लभ है । मनुष्य जन्मके प्राप्त हो जानपर भी योग्य देश कुल आदिकी प्राप्ति होना दुर्लभ है । हितपिणी बुद्धिका मिललना इन सबसे भी अधिक दुर्लभ है । भावार्थ-इस संसार में परिभ्रमणः करनेवाले जीवको मनुष्य जन्मका मिलना उतना ही कठिन है। जितना कि समुद्रके मध्यमें पड़े हुए रत्नका पुनः मिलना। कनाचित् मनुष्य जन्मकी भी प्राप्ति हो जाय तो भी योग्य क्षेत्रमा मिलना उतना ही कठिन है जितना कि धनिकाम उदार दानियों का मिलना, क्योंकि मनुष्य जन्म पाकर भी यदि कोई म्लेच्छ. क्षेत्र आदिकमें उत्पन्न हुआ तो वहां चारित्र धारण कानकी योग्यता . ही नहीं है। कदाचित कोई उत्तम क्षेत्रमें भी उत्पन्न हुआ तो मी उत्तम कुलका मिलना उतना ही कठिन है जितना कि विद्वानों परोपकारीका मिलना कठिन है; क्योंकि कोई उत्तम क्षेत्रमें उत्पन्न होकर भी ऐसे नीत्र कुलमें उत्पन्न हुआ जिसमें कि संयम दीक्षा नहीं ली जा सकती तो उस कुलका प्राप्त करना ही व्यर्थ है। इत्यादिक रत्नत्रयकी साधक सामग्रियों का मिलना उत्तरोउत्तर अति दुर्लभ है। सामग्रियों के प्राप्त हो जाने पर भी उस हितैपिणी बुद्धिका-तत्त्वश्रद्धा, सम्यग्ज्ञान, तथा उपेक्षाबुद्धि ( चारित्र )का मिलना उतना ही कठिन है जितना कि समस्त गुणोंके मिल जाने पर भी कृतज्ञताका मिलना कठिन है। इस प्रकार इस नगत् जीवको रत्नत्रयका मिलना सबसे अधिक दुर्लभ है ॥१४॥ यद्यपि यह सम्यग्दर्शनरूपी सुधा हितकी साधक है तो भी अनादि मिथ्यात्वरूपी रोगसे आतुर हुए प्राणीको वह रुचती नहीं । किन्तु आत्मासे मिन्न औरआत्माके असाधक तत्वों में एकमात्र रुचि होती है। केवल इसी लिये यहः .
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy