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________________ १८] महावीर चरित्र । निनालय कल्पवृक्ष के समान मालूम होते थे। क्योंकि निस तरह वृक्ष लाल वर्णके नवीन पल्लव होते हैं उसी तरह यहां पर पद्मरागमणियां लगी हुई थीं । अर्थात् जिनालयोंके बनवानमें इसने खूब ही धन खर्च किया था। क्योंकि साधु पुरुषोंका धन धर्म ही होता है || ४ || जिनके कर्णके मूलसे मद कर रहा है, निन पर कि भ्रमर-पंक्ति भ्रमण कर रही हैं तथा जिनके कानमें स्वच्छ चमर लटक रहे हैं ऐसे अनेक मत्त हस्ती इस रानाकी मटमें आते थे, वे इस राजाको बहुत प्रिय मालूम होते थे। टीक ही है जो बड़े दानी हैं वे किसको प्रिय नहीं लगते ? दानी नाम हाथीका भी है और दान करनेवालेका भी है ॥ ५ ॥ दूसरे देशोंक राजाओं के मंत्री अथवा दुसरे मुखिया जो कि स्वयं कर अथवा भेट लेकर आते थे उनके साथ यह राना कुशल प्रश्नपूर्वक बहुत अच्छी तरह संभाषण करता था। ऐसा कोई भी शन्न नहीं बोलता था जो कि उनके हृदयोंको भेदनेवाला हो; क्योंकि जो महापुरुष होते हैं वे छोटोंक ऊपर. सदाप्रीति रखते हैं ॥६॥ चारों समुद्र ही जिसके चार जन हैं, रक्षाकी विस्तृत रस्सीसे नाथ (जांघ:) कर जिसका नियमन कर दिया गया है। समीचीन न्यायरूपी बछड़ाके पोपणस जो पसुराई गई है, इस प्रकारकी पृथ्वीरूप -गौसे यह गोप ( रक्षक-राजा तथा ग्वालिया ) दूधक्के समान अनेक रत्नोंको दुहता हुआ ॥७॥ रानीके मुखपर सपक्ष्मल नेत्र ललित 'कुटी और साक्षात् कामदेव. . निवास करता था। उसके अधर पल्लव कुछ थोड़ीसी हंसीसे मनोहर मालूम होते थे । अतएव यह राना अपनी प्रियाके मुखकों देखनसे उपराम नहीं लेता था..क्योंकि मनोहर वस्तुके देखनेमें कौन अनु
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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