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________________ wwwwww १६]. महावीरं चरित्रः . था ॥६३ ॥ सौंदर्य, यौवनं, नवीन उदय, और राजलक्ष्मी ये सब सामग्री मद उत्पन्न करनेवाली हैं। किन्तु ये संत्र प्राप्त होकर भी । इस उदार राजकुमारको एक क्षणके लिये भी मद उत्पन्न न कर सकी। इसका कारण यही था कि इन सामग्रियोंके सायमें उसको. निर्मल मति भी प्राप्त हुई थी । ठीक ही है जो शुद्धात्मा हैं उनको कोई वस्तु विकार उत्पन्न नहीं कर सकती ॥६४। इस राजकुमारका समय बड़ी भक्तिके साथ मिनमंदिरोंकी पूजन करते हुर, महामुनियोंसे जिनेन्द्रदेवके चरित्रोंको मुनते हुए, विधिपूर्वक ब्रोंका पालन करते हुए बीतता था क्योंकि भव्य जीवोंक चित्तमें सदा धर्मका अनुराग बना रहता है ॥६५॥ महात्माओंके मुखिया और जितेन्द्रिय इस रानकुमारने रागभावसे नहीं किन्तु पिताके आग्रहसे प्रियंकाका पाणि ग्रहण किया । यह प्रियंका अपनी श्रीसे देवांगनाओंकी आकृतिको भी जीतनेवाली थी, और कामदेवकी अद्वितीय वागुरा समानजालके समान थी ॥६६॥ अपने पतिके प्रसादसे इसने भी सम्यक्त पूर्वक व्रतोंको धारण किया और सदा धर्मरूप अमृका पान करती रही। क्योंकि नो कुलांगनाएं होती हैं वे अपने पतिक अनुकूल होकर ही रहा करती हैं ।।६७॥ यह प्रियंका कांतिकी उत्कृष्ट संपत्ति विनयरूपी समुद्र के लिये चन्द्रकला, लज्जाकी सखी और कामदेवकी विजय प्राप्त करनेकी धनुपकी प्रत्यंचाके समान थी। अतएव समीचीन चरित्रका पालन करनेवाली इस नतांगीने अपने पतिको वश कर रखा था। इस जगत्में गुण समूहकी वृद्धि क्या २ नहीं करती है ॥ १८॥ इस प्रकार अशंग कवि कृत वर्षमान चरित्रमें पुत्रोत्पत्ति.. . - नामका. पहला सर्ग समाप्त हुआ।
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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