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________________ पहला सर्ग। रखनेवाले वैश्योंसे युक्त है। तथा: जिसकी अटारीपर चढ़ता हुआ लोकसमूह · पूनाके लिये लाये हुए अमूल्य और विचित्र रत्नसमूहके प्रभाजालमें शरीरके छिप जानसे ऐसा मालूम होता है मानों इन्द्र धनुपके बने हुए कपड़े पहरे हुए हो। पारावत (कबूतर) अथवा नीलकमल ही जिसके कर्णफूल हैं, भीतों पर लगी हुई नीलमणियोंका किरणकलाप ही निसका वस्त्र (अधोवस्त्र).है, शिखरों मन्य-भागमें लटकती हुई संत मेवमाला ही जिसकी चंचल ओढ़नी है, ऊपर बैठे हुए मयुरोंके पंच ही जिसके केश हैं, चंचल स्वर्णकमलकी माला ही जिसकी बाहु हैं, सुवर्ण पूर्ण कलश ही जिसके पीन (कठोर ) स्तन हैं, झरोखे ही जिसके सुंदर नेत्र हैं, अलंकृत द्वार ही जिसका मुख है, कमलिनियोंका बना हुआ निसका चंदोवा है, ऐसी यह जिनालयश्री एक स्त्रीके समान है जो कि अतिकामको प्राप्त हो चुकी है। भावार्थ-जगत्नें स्त्रियां अतिक्राम-अत्यन्त कामी पुरुषको प्राप्त होती हैं। पर सर्वाङ्म सुंदरी जिनालयश्री भतिकाम-कामरहित-जिन भगवानको प्राप्त हुई है। इस नगरीके जिनालयोंकी श्री (शोमा) इतनी सुंदर थी कि निसको देखकर या सुनकर मिथ्या दृष्टि भी उसको देखनके लिये स्पृहा करने लगते थे, और वे अपनी उस इच्छाको रोक नहीं सकते थे ॥१८-२२|| इस नगरीकी दीवालोर कहीं-२ पड़ती हुई नीलमणिकी. लम्बी किरणें सर्पके समान मालुम होती हैं। अतएव उनको पकड़ने के लिये वहांपर मयूरी (मोरनी) वार २ आती हैं। क्योंकि __ . काले सांपका स्वाद लेनके लिये उनका चित्त चंचल रहता है।॥२३॥ स्फटिक अथवा लोंकी निर्मल भूमिमें वहांकी स्त्रियोंके मुखकीजो
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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