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________________ -vvve २३४ ] . महावीर चरित्र। .. लिया है पदार्थोंकी गति--स्वभावको निसने ऐसा मनुष्य क्या कष्टोंमें : पड़ने पर मी उत्कृष्ट धैयको छोड़ देता है ! ॥४०॥ छोड़ दिया है। सब प्रकारके ममत्वको जिसने तथा निपुण है बुद्धि जिसकी ऐसा : वह साधु यदि गुणियोंमें कोई रोगी होते तो उनका प्रतीकारः करता था। ठीक ही है । जो सज्जन हैं वे सदा परोपकार,.. ही प्रयत्न करते हैं ॥ ४१ ॥ निर्दोष है चेष्टा-चारित्र निसका ऐसा वह साधु भावपूर्ण विशव हृदयसे महु श्रुनोंकी, अर्हतोको, गुरुओंआचर्योकी, तथा समीचीन आगमकी भक्ति करता था॥४२॥ वह कालको न गमाकर छह प्रकारकी समीचीन नियम विधियों पडावश्यकोंमें उद्या रहता था। जो अपना हित करनेमें उद्यन है,.. सकल विमल.अवगम-आगमके ज्ञाता हैं वे प्रमादका कभी अवलम्बन नहीं लेते ।। ४३ ॥ श्रेष्ठ वाङ्मय, ता, और जितपतिकी पूजाके : द्वारा निरंतर धर्मको प्रकाशित करता हुआ वह साधु सदा जिन शासनकी प्रभावना करता था ॥ ४४ ॥ खनकी धारके समान तीक्ष्ण और अत्यंत दुष्कर तपको आगमके अनुसार तपता हुआ . वह ज्ञाननिधि अपने साधर्मियों में स्वभावसे ही वात्सल्य रखता.या .... ॥१५॥ विधि पूर्वक कनकावली और रत्नमालिकाको समाप्त कर .. उसके बाद मुक्तिके लिये मुक्तावली तथा महान् सिंह विलसित उपवास करता था ॥४६॥ मारून.. चातक समूहके हर्षको. निरंतर बढ़ाता हुआ ज्ञानरूप जलके द्वारा शांत कर दिया है पाए... साधु मुनियोंमें आकाशमें मेवकी तरह शोमाको. प्राप्त होता था ॥ ४५ ॥ निर्भय होकर गुप्ति और समितियों में प्रवृत्ति करनेवाला वह महाबुद्धि नितेन्द्रिय. निर्मल शरीरका धारक. .
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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