SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ ] महावीर चरित्र । . ... है, दूसरोंके दुष्प्राप्य मोक्षलक्ष्मीको उत्सुक बनानेमें जो समर्थ है, कातर पुरुप जिसको धारण नहीं कर सकते, . उस अचल ब्रतको करनेवाले योगी की ही नग्नता पर्याप्त होती है। यह नग्नता निय-: मसे तत्वज्ञानी विद्वानों के लिये मंगलरूप है॥ १०९॥ इन्द्रियोंके इष्ट विषयोंमें जिस अद्वितीय विमुक्तबुद्धिका मन इतना निरुत्सुक होगा, है कि पहले भोगी हुई भोगसम्पदाका भी वह कभी स्मरण नहीं करता! किंतु जो मोक्षके लिये दुश्चर तपको तपता है वही, ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ साधु रतिपरीपंहको जीतता है ।।..११.० ॥ कामदे वरूप अगिको उत्पन्न होनेके लिये जो अरेणी के समान है.. ऐसी कामिनियोंके द्वारा बाधित होने : पर.जो साधु : अपने हृदयको इस तरह संकुचित करलेता जैसे कि कछुआः किसीसे : बाधित होनेपर अपने अंगोंको समेट लेता है, वही महात्मा स्त्रियोंकी बाधाको सहता है ॥ १११ ॥ एक अतिथि देशांतरमें रहे . हुए... चैत्य-प्रतिमा मुनि गुरु या दूसरे अपने अभिमतोंकी वंदना करने लिये अपने संयमके अनुकूल मार्गसे होकर और अपने उचित समयमें चला जारहा है। नाते जाते पैरमें कंकड या पत्थर : वगैरह । ऐसे लगे कि जिससे उसका पैर फट गया. फिर मी उसने पूर्वकालमें जिने सवारी आदिके द्वारा वह गमन किया करत स्मरण तक नहीं किया ऐसे ही साधुके सत्पुरुष चर्यापरीषहका विजय मानते हैं ॥ १.१२ ॥ पर्वतकी गुहा आदिकमें पहले अच्छी .. तरह देखकर-जमीनको शोधकर फिर वीरासन आदिक आसनोंकी .... एक प्रकारकी लकड़ी होती है जिसको . घिसते ही आगः ।। दा हो जाती है ! . . . . . .
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy