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________________ . चौदहवां सर्ग। . [ १८७ mimiminnan nown यहां मूर्तिमान् प्रशस्त यज्ञके समान प्रियमित्र नामका पुत्र हुआ ॥६॥ बुद्धिवपत्रके लोममें पड़ी हुई समस्त विद्यायें उसकी पहलेसे ही प्रत्यक्ष उपासना करने लगी। मालूम हुआ मानों उसको शीघ्र पाने के लिये अत्यंत उत्सुक हुई साम्राज्य-क्ष्मीकी प्रधान 'दुतिकार्य ही हों ।। ७ ।। निम तरह निर्मल रत्नोंका आधार समुद्र होता है. उसी तरह वह कुमार भी अत्यंत निर्मल समस्त गुणोंका भानन बन गया । पर यह बड़ी विचित्र हुई जो लावण्य (सौंदर्य; समुद्र पक्षमें खारापन ) को धारण करते हुए भी समस्त दिशाओं में ही नहीं किंतु लोकमामें मधुरता फैल गई ॥ ८ ॥ चंद्र. माकी तरह द्वित्त (सदाचारी; दुमरे पक्षमें बिल्कुल गोल ) समस्त कलाओंको धारण करनेवाला, अनेक. मृदु पादों (चरणों; दुसरे पक्ष में किरणों ) की सेवा करनेवालों को आनंद बहानवाला, तथा सम्पूर्ण कुमारने नवीन यौवनके द्वारा बड़ी मारी रूपशोभाकी सामग्रीको प्राप्त किया ॥ ९ ॥ वसंत समयमें नवीन पुष्ष लक्ष्मीको निसने धारण कर रखा है ऐमा कुमार दुमरोंको छोड़कर हर्पको प्रप्तकर .पड़ते हुए.मत्त बधुओंके चंचल नेत्रोंसे ऐसा मालूम पड़ता था मानों भ्रमर समूहोंसे ही एकत्रित हो रहा हो ॥ १० ॥ ___ एक दिन वह रामा धनंजय क्षेमंकर मुनिराजके निकट जाकर तथा उनके अदिष्ट धर्मको एकाग्र चित्तसे भले प्रकार सुनकर अत्यंत-उत्कृष्ट विरक्त बुद्धि-मुनि हो गया ॥ ११ ॥ अपने मुल उस मुख्य पुत्रके ऊपर लक्ष्मी-राज्यलक्ष्मीको छोड़कर शीघ्र ही दीक्षित हुभा राना बहुत ही शोमाको प्राप्त हुआ । संसारके व्यहनको नष्ट कर देनेवाली तपस्था कि मुमुक्षुकी शोमाके लिये नहीं
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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