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________________ ... ... .... A NAAAAAAAAnan...NAMAANNAPPAMM ":.. : : १७. ] महावीर चरित्र । ... (निसके देखनेसे जहर चढ़ जाय) सकेि समान इनसे संबंध करनेसे डरता है ॥ १४ ॥ शरीरधारियोंको जन्मके सिवाय दुसरा कोई... बड़ा दुःख नहीं, मृत्युके समान केई मय नहीं, वृद्धावस्याके समान कोई बड़ा भारी कष्ट नहीं, यह समझ कर नो. सत्पुरुष है. वे आत्माके हितमें ही लगते हैं ॥ ५५ ॥ अनादि कालसे संसार समुद्रमें भ्रषण करते हुए जीवको समस्त जीव और पुद्र प्रिय और अप्रिय भावको प्राप्त हो चुके हैं। क्योंकि कर्म और नोकमा ग्रहणकरनेके उपयोगमें वे आचुके हैं ॥५६॥ इन समस्त तीन लोकमें कोई ऐसा प्रदेश नहीं है जहां पर यह जीव अनेकवार न मरा है हो.। इस जीवने सभी भावों का बहुतसी वार अनुभव किया है और समस्त कर्म-प्रकृतियोंका भी अनुपत्र किया है ॥५७ ॥ ज्ञानके द्वारा विशुद्ध है दृष्टि-दर्शन जिनका ऐसा जीव इस बातको अच्छी तरह जानता हुआ किसी भी प्रकारके परिग्रहमें आशक नहीं और उन सम्पूर्ण परिग्रहोंको छोड़ कर तपके द्वारा कोको मूलमेसे उन्मूलित कर सिद्धि-मुक्तिको प्राप्त होता है ।। ५८॥ कनबनके हितके लिये ऐसे वचन कह कर वे ववस्वी-वचन बोलने में कुशल साधु चुप होगये । रानाने भी उनके बत्रनोंको वैसा ही माना-.. वचनोंपर यथार्थ श्रद्धा की । जो भव्य होता है वह मुमुक्षुओंके, वायोर श्रद्धान कर लेता है ॥ ५९॥ ___.. संसारकी वृत्तिको वष्ट-दुःवरूप- समझकर और विषयोंकी'; अभिलाषाओंसे चित्तको हटाकर राजाने विधिपूर्वक तप करनेकी इच्छा: की । पुरुषके शास्त्राभ्यास करनेका सार यही है ॥ ६॥ राजलक्ष्मी के साथ नेत्रनल-आंसुओंसे भीग कर निमका दुपट्टा गीला हो . ... ....
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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