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________________ १४० ] महावीर चरित्र | New करनेके लिये उसकी वलमा चरित्रीने भविष्यत लक्ष्मी या भाग्यलक्ष्मी अथवा प्रतापलक्ष्मी के साथ साथ उत्तम कोष और 'दंडको उत्पन्न किया ||२८|| लक्ष्मीपर विनय करनेवाले बड़े पुत्रका - नाम परंतप था और यश ही है धन जिसका ऐसे छोटे भाईका नाम विजय था | सुंदर मृगनयनी लड़कीका नाम ज्योतिप्रमाथा ॥ २९॥ दोनों पुत्र हर तरफसे शरीरकी विशेषता के साथ साथ पिनाके गुणोंका अतिक्रम करने लगे । और वह कन्या कांतिसे अपनी माको जीतकर केवल शीलकी अपेक्षा समान रही ||३०|| वे दोनों ही पुत्र राजविद्याओं में- नीति शाखादिकमें, हाथीके बढ़ने चलाने - दिकमें, घोड़े की सवारीमें, हरएक तरहके अनशनके पलने आदि-: - कमें निरन्तर कुशलताको धारण करने लगे । कन्याने भी समस्तं -कलाओं में कुशता प्राप्त की ॥ ३१ ॥ एक दिन प्रजापतिने दूतके मुखसे सुना कि विद्याधरीकास्वामी ज्वलनटी तपपर प्रतिष्ठित हो गया- उसने सुनिदीक्षाली । वह उसी समय अपनी बुद्धिमें विषयोंके प्रति निःस्पृहा घा रण कर यह विचार करने लगा ||३२|| "वह रथनूपुरका स्वामी - ही धन्य हैं, और उसकी ही बुद्धि - हितानुबंधिनी - हित में लगानेवाली है। जो कि इस तृष्णामय वज्र के पिंजरे मेंसे, जिसमें कि • - दुःखपूर्वक मी नहीं निकला जा सकता, सुखपूर्वक निकल गया ॥३३॥ समस्त पदार्थ क्या क्षणभंगुर नहीं हैं ? जगत् में क्या सुखका एक लेशमात्र भी है ? बड़े खेदकी बात है कि विवेकरहित यह नीव फिर भी अपने हितमें प्रवृत्त नहीं होता, किन्तु नहीं करने - योग्य कामों में ही प्रवृत्ति करता है ||३४|| प्रतिक्षण जैसे जैसे .
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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