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________________ .. . . . ...... .. ... नववा सर्ग। [१३३ चरणयुगलकी. पूजा करो नहीं तो धैर्यसे इसके चक्रके आगे हाजिर होय ॥९५|| अपने हाथपर रक्खे. हुए, बड़ी बड़ी ज्वालाओंसे जिसके .आरे चमक रहे. हैं ऐसे निर्धूम अग्निके समान मालूम पड़नेवाले चक्रको देखकर त्रिपिष्ट अश्वग्रीवसे फिर बोला-'हे अश्वग्रीव ! मेरे पैरोंपर शीघ्र ही पड़कर मुनिपुंगवकी शिष्यता स्वीकार करोमुनिके पास दीक्षा लेलो। इससे तुम्हारा कल्याण होगा। नहींतो मुझे तुम्हारा जीवन दीखता नहीं हैं-इसके विनातुम जीवित नहीं रह सकते हो १६ समुन्द्रसमान-गम्भीर अश्वग्रीव विष्णुकी तरफ हँसकर बोलामेरा बड़ा भारी आलय (आयुधशाला) आयुधोंसे भरा हुआ है। उसमें इतने हथियार भरे हुए हैं कि जिनके वीचमें एक संधिमागकी भी जगह नहीं है। पर इस अलातचक्र-चिनगारियों के समूह समान चक्रसे तेरी मति गर्विष्ट होगई है। अथवा ठीक ही है-जो नीच 'मनुष्य होते हैं. वे क्या नीचको पाकर हर्पित नहीं होते हैं।' जरूर होते हैं ।।९७॥ आगे खड़ा हो, बहुत वकनेसे क्या और हे मूढ़! . आन इस युद्ध में तू परस्त्रीसे सुरत करनेकी अमित्रपाका जो कुछ फल होता है उसको भोगकर नियमसे मृत्युके मुखमें प्राप्त हो। ऐसे कोई-भी मनुष्य कि जिनका चित्त परस्त्रीके संगमसे होने वाले सुखमें अत्यंत आशक्त रहता है समस्त शत्रुओंको वशमें करनेवाले पृथ्वीपालके जीवित :. रहते हुएं चिरकालतक जीवित रह सकते हैं ॥९८ ॥ एक जरासे लेके समान अथवा खलके टुकड़ेके समान इस चक्रको जिसको कि मैंने भोग कर छोड़ दिया है जो मेरी झूठनके . ..अथवा दूसरा अर्थ यह भी है कि जो नीच नहीं हैं वे . मनुष्य क्या नीचको-पाकर हर्षित होते हैं। कमी नहीं होते।
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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