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________________ १३२] महावीर चरित्र । mmomainini हसी लाकर निर्भय हो त्रिपिष्टसे अथवा निर्भय त्रिपिष्टसे ऐसा बोला ॥९१॥ "अब यह चक्र तेरे मनोरथोंको विफल करता है। इससे इन्द्र भी तेरी रक्षा नहीं कर सकता। अतएव या तो मुझको. प्रणाम करनेमें अपनी बुद्धिको लगा । मुझको प्रणाम करनेका विचार कर, नहीं तो परमात्माका ध्यान घर जो परलोकमें काम आवे' ||९२॥ इसका उत्तर केशवने अश्वग्रीवको इस तरह दियाः "जो डरपोक हैं उनको यह तेरा वचन अवश्य ही. भय . उत्पन्न कर सकता है। परंतु जो उन्नत हैं-निर्मीक हैं उनके लिये यह कुछ भी नहीं है । जंगली हाथियोंकी चिंघाड़ हिरणों के बच्चोंको. अवश्य घबड़ा दे सकती है। पर क्या सिंहको भी त्रास दे सक्ती है ? ऐसा कौन पराक्रमी होगा जो तेरे इस चक्रको कुंभारके चोक समान न माने शुख्खा वचनमें नहीं रहती क्रियामें रहती है" ॥९॥ इस तरहके वचन सुनार अश्वग्रीव शीघ्र ही चक्रको छोड़ा। जिसको कि राजा लोग ऐमा देख रहे थे या समझ रहे थे कि यह: अवश्य ही भय देनेवाला है। जिसमेंसे वारवार किरणें निकल रही: हैं ऐसा वह चक्र मानो . यह कहता हुमा-पूछता हुआ ही 'कि: क्या आज्ञा है ? अश्वग्रीवके पाससे त्रिपिष्टकी दक्षिण मुना पर आकर प्राप्त हुआ ॥९॥ प्रसिद्ध बड़े बड़े शत्रुओंका शिरच्छेद कर उनके खूनसे जिसका शरीर लाल पड . गया है, हे विद्वन निसके प्रतापसे तु समग्र पृथ्वीके ऊपर पूर्ण काम-सफल मनोरथ हो रहा था-जो तेरी इच्छा होती थी वह सफल होती थी वहीं यह तेरा चक्र पूर्वजन्मके पुण्यसे मेरे हस्तगत हुआ है । इसका फल । क्या हैं सो जानकर-ध्यान में लेकर या तो सामंतोंके साथ-साथ मेरे
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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