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________________ नववा मर्ग : [१२३ -२९॥ एक अत्युन्नत गजरानकी लम्बी मुंड मूलभैसे ही कट गई। इसीलिये उसके कुनकुन खुनका महा प्रवाह वहने लगा। मालम पड़ा मानों, अंजनंगिरिकी शिखरपरसे गेल्में मिला हुआ झरनाका जल गिर रहा है ॥१०॥ यात्रोंक दुःखके मारे जो मुच्छ आगई यी. उसको दूरकर फिरसे शत्रुओंको मारने के लिये जो प्रवृत्त हुए उनको महाभोंने बड़ी मुश्किलसे रोका । कौन ऐसा धीर पुरुष है जो सत्संग्रह नहीं करता है ? ॥३१॥ चमकती हुई तलबारसे शत्रुके मारनकी यह चेष्टा तो का रहा है पर इस शुरवीरका शरीर बायोकें मारे बिल्कुल विह्वल हो रहा है। यह देखकर किसी. संजन योद्धाने उसको कंगा करके नहीं मारा। क्योंकि जो महानुभाव होते हैं व दुखियोंको कमी मारते नहीं ॥३२॥ किसीर के इतनी भीतरी मार लगी कि उसने मुखके द्वारा एकदम खूनकी घार छोड़ दी 1. मालूम पड़ा कि पहलेसे सीखी हुई इन्द्रनाल वियाको रणमें राजाओंके सामने प्रकट की है ॥३३॥ किसीके वक्षः: स्थलपर असह्य शक्ति पड़ी तो भी उसने उसकी-योद्धाकी शक्तिसामथ्र्यका हरण नहीं किया। ऐसी कोई चीज नहीं है जो युद्धमें लालसा खनवाले मनस्त्रियोंके दपको नष्ट कर सके ॥३४॥ नीलकमलके समान याम दीप्तिकाली, दंतोग्नला (निमकी नोंक चमक रही है। पक्षांतर में उज्ज्वल दांतोंवाली ) चारूपयोधरोरु (अच्छे पानीवाली और महान पक्षातरमें सुंदर स्तन और अंबाबाली ) प्रियाक समानः खगलताने शत्रुके वक्षःस्थलपर पड़ते हुए उस वीरको ऐसा. कर, दिया जिससे कि उसने-सुखपूर्वक नेत्र मींच लिये ॥ ३५ ॥ शत्रुके द्वारा हृदय में मेरे गये भी किसी क्रुद्ध हुए योद्धानेः अपने वंशकाः -
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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