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________________ .......nindian N.www w wwwwwwwww. .... . १२२ ] महावीर चरित्र । . . लोग छोड़ देते हैं ॥ २३ ॥ जिनका शरीर बाणोंसे घायल हो गया है, पैर वेकाम हो गये हैं, गला कांप रहा है, नाकमेंसे : घुर घुरः शब्द निकल रहा है ऐसे घोड़ोंने, खूनकी धनी कीचमें जिनके पहिये फस गये हैं ऐसे रथोंको बड़ी मुश्किलसे खींचा ॥ २४॥ युद्धकी रंगभूमिसे किसीकी मूलमें से कटी हुई मुनाको लेकर गृधः आकाशमें घूमने लगा। मालूम हुआ मानों प्रशस्तं कर्म करनेवाले ... उस वीरकी जयपताका ही चारोतरफ घूम रही है ॥ १५ ॥ क्रुद्ध और मदोन त हस्तीने अपने सामने खड़े हुर योद्धाको झसे नीचे डालकर उसके बांये पैरको खूब जोरसे झूहमें दवा कर और दाये.. पैरको पैरसे दबा कर चीर डाला ॥ २६ ॥ किसी २ योद्धाको किसी २ हाथीने सूंडमें पकड़कर आकाशमें फेंक दिया। परंतु वह खिलाड़ी था इसी लिये वह वहांसे गिरते गिरते ही उसके कुम्मस्थलकेपृष्ठ भाग पर तलवारका प्रहार करता हुआ ऐमा मालुम पड़ा', मानों उसके हृदय में किसी तरहका संभ्रम ही नहीं हुआं ॥२७॥ - जन आश्रय देनेवाले पर विपत्ति आवे उस समय कौन ऐसा होगा: “जो निर्दय हो जाय । इसीलिये तो बाणोंसे घायल . हुए हाथीबांनोंको जो घावोंसे मूर्ख या खेद हो रहा था उसको हाथियोंने अपनी सूडको ऊपर उठाकर और उसका जल छोड़कर दूर कर दिया ॥ २४॥ जिनका शरीर शरोंसे पूर्ण है ऐसे योद्धा 'निश्चल हाथियोंके ऊपर बैठे हुए ऐसे मालूम पड़े, भानों पर्वतके . ऊपर ये ऐसे. वृक्ष हैं कि जिनकी तापसे (धूपसे; पक्षांतर में दुःखसे) : पत्र (पत्ते, पक्षांतर में सवारी) शोमा तो निःशेष-नष्ट हो गई है और - केवल उनमें त्वचाका ?-वकला प्रक्षातरमें चर्म ) सार रह गया है।
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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