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________________ NANVARNAVAN ९८] महावीर चरित्र । है जो विना छेदन किये उसको शांत कर दे॥ ४५ ॥ जो कसरी स्वयं चारो तरफ हाथीको हूंह हूंहकर मारता है क्या वह स्वयं युद्धकी इच्छासे अपने निवासस्थान गुहापर ही आये हुए हस्तीको छोड़ देगा? ॥ ४६॥ आपकी वाणी अनुलंब्य है तो भी उसका उलंघन करके मेरा छोटा भाई, अनर्गल हाथीके बच्चेका गंधहस्तीकी तरह क्या अश्वग्रीवका बात नहीं करेगा ! ॥ ४७ ॥ जो मनुष्योंमें नहीं रहता ऐसे इसके दैविक (देवसम्बन्धी ) पौरुपको और कोई नहीं जानता, एक मैं ही जानता हूं। इसलिये इस विषयमें आपका केवल मौन ही भूपण है ॥ ॥ ४८ ॥ पौरुप जिसका प्रधान साधन हैं ऐसे कार्यको पूर्वोक्त रीतिसे बताकर जब दुर्जय विजयने विराम लिया तब मतिसागर नामका बुद्धिमान मंत्री अपने वचनोंको इस तरह स्पष्ट करने लगा ॥ ४९ ॥ कर्तव्यविधिक विषयमें श्रेष्ठ विद्वान् विजयने यहां-आपके सामने सब बात स्पष्ट कर दी है तो भी हे देव! यह जड़बुद्धि जन कुछ जानना चाहता है ।। ५० ॥ ज्योतिषीने क्या यह सब बात हमसे पहले ही.वास्तव में नहीं कही थी? अवश्य कही .थी, तो भी.मैं इसकी उत्कृष्ट अमानुष लक्ष्मीकी परीक्षा करना चाहता ई॥ ११ ॥ जो काम अच्छी तरह विचार करके किया जाता है उससे.परिणाममें भय नहीं होता। अतएव जो विवेकी हैं वे बिना विचारे कमी कामका आरम्म नहीं करते हैं ।। ५२ ।। जो सात ही दिनमें सम्पूर्ण रथविद्याओंको सिद्ध कर लेगा वह पृथ्वी नारायण समझा जायगा और वह इस अर्धचक्रवर्तीको युद्ध में नियमसे जीतेगा •॥५३॥ कर्तव्य वस्तुके लिये कसौटीके समान मंत्रीके कहे हुए इन
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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