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________________ सातवां सर्ग। [९७ पातसे भीरुता ॥३८॥ यद्यपि तृण. बहुत दुर्बल होता है तो भी वह अपने प्रतिकूल पवनको नमना नहीं है। वह उस पुरुषसे अच्छा है जो स्वयं शत्रुको नमस्कार करने लगता है ॥३१॥ नित कारगसे मरा हुआ आदमी गुरुत्व (महत्व, दूपरी पक्षमें भारीपन; क्योंकि मरा हुआ आदमी भारी हो जाता है) को पाता है वह कारण मुझे अस मालून हुआ। क्योंकि लघुता (दीनना, दूसरी पंक्षम हलकापन; क्योंकि जिदे मनुष्यका शरीर हलका रहता है) का कारण याचना है सो बह निन्द्रा आइमी विस्कुल नहीं रहती || समाधर (समा-शांतिको धारण करनेवाला या राजा, दूसरी पसमें पर्वत) बहुत उन्नत होता है तो भी उसको लोग सहनहीमें लांघ जाते हैं। बात ठीक ही है। क्योंकि जगत में कौन ऐमा है जिसके पराभवका कारण समा नहीं. होती ॥ ११ ॥ दिन में तेजके नष्ट हो जानेसे ही मूर्य अच्छी तरह को प्राप्त होता है। . . अतएव जो उदारबुद्धि हैं वे एक टणक लिरे भी जानल्यमान तेनको नहीं छोड़ते ॥१२॥ समावस ही महापुरुषोंसे शत्रुता । करनेवाला सांत्वनाओंसे शांतिको धारण कर लेना है ? कभी नहीं। प्रत्युत. उससे और भी वह प्रचण्डता धारण करता है। समुद्रकी चंडमानल जलसे शांत नहीं होती, प्रचण्ड होती है ॥४३॥ जिसकी बुद्धि मंदसे मूर्छित हो रही है ऐसा उद्धत पुरुष हस्तीकी तरह तभी तक गर्नता है जब तक वह सामने मीपण आकारके धारक सिंह समान शत्रुको नहीं देखता है ॥४४॥ एक तो जगतमें दुर्नामक (भयंकर जलनंत) पहले ही प्राण हरण करनेवाला है फिर भी वह महान् उदयको धारण कर विक्रियाको प्राप्त हो जाय तो कौन बुद्धिमान
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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