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________________ महावीर चरित्र । खूनसे विचित्र हुई गदाको हाथमें लेकर उठा । और उसने अपने वायें हाथसे उसको खूब जोरसे बुलाया । घुमाते समय गदामें लगी हुई पद्मराग मणियोंकी जो प्रमा निकली उससे ऐसा मालूम पड़न लगा मानों उसके हाथमेंसे रोपरूपी दावानल निकल रहा है ॥२ भृकुटियोंके टेढ़े पड़ जानेसे मुख टेढा पड़ गया, आखें गुलाबी हो. गई, पसीनाके जलकर्णोसे कपोल मूल व्याप्त हो गया, उन्नत शरीर झूमने लगा; और ओंठ कंपने लगे । वह भीम उग्र कोपको धारण कर समामें साक्षात् कोर सरीखा ही हो गया ॥ २९ ॥ नीलकंउने जिसका कि हृदय विद्याओंसे लिप्त था, जो प्रतिपक्षियोंका भय होनेपर शरणमें आनेवालोंको अभय देता था इस समय कोपसे किये गये अपने गंभीर कहकहाट शब्दके द्वारा सभाकै सभी मकानों-कमरोंके विरोंको प्रतिध्वनित करते हुए हंसा दिया ॥३०॥ इस समय जो कोई भी क्रुद्ध होता हुआ समामें आता था उसके शरीरका सेनके पसीनासे भीगे हुए निर्मल शरीरमें प्रतिबिम्ब पड़ जाता था, जिससे अनेक रूप हुभा वह-सेन ऐसा मालूम पड़ने लगता था मानों युद्ध रससे विचावलके द्वारा शत्रुओंको नष्ट करने के लिये वलकी विक्रिया . कर रहा है ॥ ३१ ॥ क्रोधसे उद्धत हुआ परिधी शत्रुओंके मत्त हाथियोंके दांतोंका अभिघात पाकर जिसपर बड़े २ व्रण हो गये हैं, जिनमें कि हार भी मग्न हो मया है, एवं निसपर रोंगटे खड़े हो गयेहैं ऐसे अपने विशाल वक्षःस्थलको सीधे हाथसे ठगेकर कर परिमार्जित करने लगा ॥३२॥ निष्कपट पौरुषसे शत्रुवर्गको वशमें करनेवाला, विद्यावैभवसे उन्नति करनेवाला, उन्नत कंधाओंसे युक्त अश्वग्रीव जिस समय कोपसे पृथ्वीको ठोंकने लगा उस समय उसके कर्मो
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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