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________________ श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव A क्षत्रियकुंडे समवसरण, ॥२६ ॥ अह पुत्वदुयारेणं पविसित्ता सुरगणेण थुवंतो । सिंहासणे निसन्नो पुवाभिमुहो जिणवरिंदो ॥५॥ एक्कारसवि गणहरा केवलमणपजवोहिनाणी य । चउदसदसपुत्रीविउविइड्डीपत्ता य मुणिवसभा ॥ ६ ॥ उद्घट्ठिया उ बेमाणियाण देवीओ तहय समणीओ। ठायंति जिणं नमिउं दाहिणपुवंमि दिसिभाए ॥ ७ ॥ अह दाहिणदारेणं पविसित्ता विणयपणयदेहाओ । भवणवइवाणमंतरजोइसदेवाण देवीओ ॥ ८॥ काउं पयाहिणं भुवणवंधुणो धम्मसवणलोभेण । निसियंति पहिवाओ दाहिणपञ्चत्थियविभागे ॥९॥ तत्तो पच्छिमदारेण पविसिउं पवरभूसणसणाहा । भवणवइवाणमंतरजोइसिया हरिसपणयसिरा ॥ १० ॥ विहिणा जिणं नमसिय गणहरकेवलिपमोक्खमुणिणो य । निविसति जिणाभिमुहा उत्तरपचस्थिमदिसाए ॥११॥ उत्तरदिसिदारेणं तत्तो पविसित्तु दिवरूवधरा । वेमाणियसुरवग्गा नरा य नारीजणा य तहा ॥ १२ ॥ पम्मुक्कपरोप्परवेरमच्छरा धम्मसवणतलिच्छा । उत्तरपुरत्थिमंमि य ठायंति दिसाविभागंमि ॥ १३ ॥ न कुणति हासखेडाई नेव चखं खिवंति अन्नत्य । चित्तलिहियच सवे जिणिंदवयणं पलोयंति ॥ १४॥ तयणंतरं च बीए पायारम्भंतरे तिरियवग्गो। हयमहिससीहपमुहो उज्झियवेरो सुहं वसइ ॥ १५ ॥ कहं चिय?-13 दिणयरकरसंतत्तं भुयंगमं छायए सिहंडेहिं । तंडविएहिं सिहंडी करुणाए विमुक्ककुविगप्पे ॥ १६ ॥ कंडूयइ दसणकोडीए कुंजरो केसरिस्स मुहभागं । धावारइ सीही हरिणसावयं दढछुहाभिहयं ॥ १७ ॥ ॥२६ ॥
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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